वितीय प्रबन्ध का महत्व
IMPORTANCE OF FINANCIAL MANAGEMENT
लोक प्रशासन में वितीय प्रबन्ध का महत्व का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है – वित्तीय प्रशासन । यह ‘बजट’ उपकरण के माध्यम से काम करता और संपूर्ण ‘बजटीय चक्र’ को घेरता है। इसका अर्थ है- बजट का निरूपण, बजट का अधिनियमन, बजट का क्रियान्वयन, लेखांकन और लेखा परीक्षण। सी. पी. भांभरी के अनुसार, “वर्तमान अर्थ में इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1773 में ओपनिंग दि बजट नामक व्यंग्य रचना में वालपोल की उस वर्ष की वित्तीय योजना के विरुद्ध किया गया था।
सरकारी प्रशासन के लिए वित्तीय प्रशासन के महत्त्व पर प्रचलित वक्तव्य निम्न हैं
कौटिल्य – ” सारे काम वित्त पर निर्भर हैं। अतः सर्वाधिक ध्यान कोषागार पर देना चाहिए। “
हूवर आयोग – “ वित्तीय प्रशासन ‘आधुनिक सरकार का मर्म’ है।
विलोबी – “बजट ‘प्रशासन का अभिन्न और अनिवार्य औजार’ है। “
डिमॉक-“वित्तीय प्रशासन के सभी पक्षों में से बजट निर्माण सबसे ज्यादा नीति संबंधी प्रश्न उठाता है । ”
लॉयड जॉर्ज-“ सरकार वित्त है। ”
मॉरस्टेन मार्क्स-“प्रशासन में वित्त वातावरण में ऑक्सीजन की तरह ही सर्वव्यापी है । “
तुलनात्मक लोक प्रशासन का अर्थ
लोक प्रशासन में वित का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। प्रशासन और वित में उतना ही घनिष्ठ सम्बन्ध होता है जितना कि ‘शारीर’ और ‘रक्त’ में, यदि प्रशासन शारीर है तो वित आत्मा, जिस प्रकार शारीर को चलने के लिए आत्मा कि जरुरत होती है उसी प्रकार प्रशासन को जीवित रखने के लिए वित कि आवश्यकता होती है । वस्तुतः वित ही प्रशासन का ‘जीवन रक्त’ है। लोक प्रशासन में प्रशासन शारीर है तो वित रक्त है। जिस प्रकार शारीर को चलाने के लिए रक्त की जरूरत होती है उसी प्रकार प्रशासन को चलाने के लिए वित की अंत्यत आवश्यकता है। वित के बिना प्रशासन अधुरा है। प्रशासन तथा वित शारीर और उसकी छाया की भांति एक दुसरे से जुड़े हुए है। राज्य के सभी प्रशासकीय कार्यो में धन व्यय होता है, क्योंकि प्रशासकीय कृत्यों के क्रियान्वयन हेतु आवश्यक कर्मचारी वर्ग की नियुक्ति तो आवश्यक ही है। किसी भी इंजन को चलाने के लिए ईंधन कि आवश्यकता होती है उसी प्रकार प्रशासकीय इंजन को चलाने के लिए ईंधन के रूप में वित का प्रयोग आवश्यक है। पहले का परिचालन दुसरे की बिना असम्भव है। प्रशासन और वित एक दुसारे का पूरक है। अत: कौटिल्य ने ठीक ही कहा है: “सभी उधम वित पर निर्भर है। अत: कोषागार पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।” डॉ. सी. पी. भाम्भार्य ने वित का प्रशासन में वही मूल्य बताया है जो वातावरण में ऑक्सीजन का होता है। जिस प्रकार जीवों को साँस लेने के लिए ऑक्सीजन की जरूत होती है उसी प्रकार प्रशासन को वित की आवश्यकता होती है। प्रो. एल. डी. ह्वाइट के शब्दों में, “प्रशासन तथा वित को एक-दुसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक प्रशासकीय कार्य आर्थिक पहलू होता है जो उससे वैसे ही अविभिध होता है जैसे मनुष्य और उसकी छाया।” विलोबी के अनुसार, “दक्ष शासन की समस्या अन्तर्निहित विविध तत्वों में वितीय प्रशसन से अधिक महत्वपूर्ण कोई दूसरा नहीं है।”
वितीय प्रबन्ध
वित प्रशासन में वितीय प्रबन्ध का बड़ा महत्व है। दृढ वितीय व्यवस्था का शासन के लिए बहुत महत्व है। राजस्व जो कि निर्धन नागरिकों से भी प्राप्त किया जाता है इसलिए सरकार का यह कर्तव्य होता है की उस धन का उचित रूप से व्यय करे, ताकि इसका लाभा हर नागरिक को मिल पाए। अकुशल वितीय व्यवस्था के कारण शासन जनता से दूर होता जाता है और अन्त में शासन का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है।प्रजातंत्र में ठोस वितीय व्यवस्था के पक्ष में निश्चित भावना होनी चाहिए। इसके आभाव में अपव्यय तथा अन्य बुरी बातों का दोष जनता प्रजातन्त्र पर ही मढ़ देती है और परिणाम यह होता है कि जनता ऐसे प्रजातन्त्र से ही घृणा करने लगाती है। इस प्रकार का वितीय प्रशसान स्वयं प्रजातन्त्र के भविष्य में अपाहिज बना देती है। एक अन्य बात भी है जिसके कारण वितीय प्रशासन का आज बड़ा महत्व है। आधुनिक समय में शासकीय व्यय में असाधारण वृद्धि के कारण यह नितान्त आवश्यक हो गया है कि वितीय प्रशासन सम्बन्धी उतम सिद्धान्तों, उपकरणों एवं पद्धति का विकास किया जाये एवं हर शासन द्वारा उनका पालन किया जाना चाहिए।वितीय प्रशासन बड़े निकट से जनता के सामाजिक-आर्थिक आचरण को प्रभावित करता है।
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