भारत में सुशासन की समस्याएं (Problems of Good Governance in India)

भारत में सुशासन की समस्याएं
(Problems of Good Governance in India)

भारत में सुशासन की समस्याएं सुशासन (Good Governance) का अर्थ है ऐसी शासन प्रणाली जो पारदर्शी, जवाबदेह, समावेशी, और निष्पक्ष हो, साथ ही जिससे नागरिकों को विकास, सुरक्षा, और न्याय सुनिश्चित हो सके। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसमें सुशासन की अवधारणा बेहद महत्वपूर्ण है। हालांकि, देश में सुशासन को लागू करने में कई चुनौतियां और समस्याएं हैं। ये समस्याएं न केवल राजनीतिक और प्रशासनिक हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक तंत्र से भी जुड़ी हुई हैं। इस लेख में हम भारत में सुशासन की मुख्य समस्याओं पर चर्चा करेंगे।

1. भ्रष्टाचार (Corruption)

भारत में सुशासन की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार न केवल प्रशासनिक कार्यों में रुकावट डालता है, बल्कि जनता का विश्वास भी कम करता है। सरकारी अधिकारियों द्वारा अपने पद का दुरुपयोग करके रिश्वत लेना और नियमों का उल्लंघन करना, शासन की पारदर्शिता और जवाबदेही को कमजोर करता है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, भारत विश्व के सबसे भ्रष्ट देशों में से एक है। सरकारी सेवाओं में देरी, योजनाओं का सही से लागू न होना, और अनियमितताओं के कारण सुशासन में सुधार की गति धीमी हो जाती है।

2. कानूनी और न्यायिक ढांचे की कमजोरियां (Weak Legal and Judicial Framework)

भारत में न्यायिक प्रक्रिया काफी जटिल और धीमी है। अदालतों में वर्षों तक मामलों का लंबित रहना आम बात है, जिससे न्याय में देरी होती है। न्याय में देरी को न्याय न मिलने के रूप में भी देखा जाता है। इसके अलावा, न्यायपालिका में भ्रष्टाचार, राजनीतिक हस्तक्षेप, और प्रशासनिक ढांचों की कमी भी सुशासन की राह में बड़ी बाधा है। गरीब और कमजोर वर्गों के लिए न्याय प्राप्त करना अत्यंत कठिन हो जाता है, जिससे उनके अधिकारों का हनन होता है।

3. जवाबदेही की कमी (Lack of Accountability)

सुशासन के लिए सरकार की हर स्तर पर जवाबदेही होना आवश्यक है। हालांकि, भारत में राजनीतिक और प्रशासनिक प्रणाली में जवाबदेही की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। प्रशासनिक अधिकारी अक्सर अपने कार्यों के लिए जवाबदेह नहीं होते, जिससे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को बढ़ावा मिलता है। नीति आयोग और अन्य संगठनों के सुझावों के बावजूद, जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। जवाबदेही की कमी से नीतियों का गलत क्रियान्वयन और जनसमस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है।

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4. नीतियों और योजनाओं का क्रियान्वयन (Policy Implementation Issues)

भारत में सुशासन की एक बड़ी समस्या नीतियों और योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन न होना है। चाहे वह ग्रामीण विकास हो, शहरी सुधार, या सामाजिक सुरक्षा की योजनाएं, अक्सर देखा गया है कि इन योजनाओं का लाभ लक्षित समूहों तक नहीं पहुंच पाता। इसके कई कारण हैं, जैसे कि नौकरशाही की जटिलता, प्रशासनिक तंत्र की अक्षम्यता, और केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच तालमेल की कमी। परिणामस्वरूप, विकास योजनाएं केवल कागजों पर रह जाती हैं और जमीनी स्तर पर उनका प्रभाव नहीं दिखता।

5. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी (Inadequate Education and Health Services)

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव भी सुशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है। ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बेहद खराब है। इसके अलावा, सरकारी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भ्रष्टाचार, लापरवाही और संसाधनों की कमी से ये सेवाएं प्रभावित होती हैं। एक शिक्षित और स्वस्थ समाज सुशासन का आधार है, लेकिन जब तक शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार नहीं होगा, तब तक सुशासन के लक्ष्य को पाना कठिन है।

6. संवेदनहीन नौकरशाही (Insensitive Bureaucracy)

भारत में नौकरशाही अक्सर जनसेवा से दूर मानी जाती है। कई बार सरकारी अधिकारी जनता की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेते और उनमें संवेदनशीलता की कमी दिखाई देती है। अफसरशाही के इस रवैये के कारण जनता और सरकार के बीच की दूरी बढ़ जाती है। संवेदनहीन नौकरशाही का सीधा असर शासन के प्रभावशीलता पर पड़ता है। जब सरकारी अधिकारी जनहित की बजाय निजी स्वार्थों की पूर्ति में लगे रहते हैं, तो सुशासन की अवधारणा धूमिल हो जाती है।

7. राजनीतिक हस्तक्षेप (Political Interference)

सुशासन के लिए प्रशासनिक तंत्र का राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होना आवश्यक है। हालांकि, भारत में कई बार राजनीतिक दबाव के चलते प्रशासनिक निर्णय प्रभावित होते हैं। नौकरशाही में राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण नीतियों का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पाता है। इससे प्रशासनिक तंत्र की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर नकारात्मक असर पड़ता है। साथ ही, चुनावी राजनीति के दौरान किए गए वादों और नीतिगत हस्तक्षेप के कारण भी सुशासन की प्रक्रियाएं बाधित होती हैं।

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8. सामाजिक असमानता (Social Inequality)

भारत एक विविधतापूर्ण देश है, जहां जाति, धर्म, भाषा, और आर्थिक स्थिति के आधार पर विभाजन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। सामाजिक असमानता सुशासन की बड़ी समस्या है क्योंकि जब तक समाज के सभी वर्गों को समान अवसर और संसाधन नहीं मिलेंगे, सुशासन का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। विशेषकर दलित, आदिवासी, और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता है। इसके अलावा, लिंग असमानता भी एक गंभीर समस्या है, जो सुशासन के प्रयासों को कमजोर करती है।

9. सूचना का अभाव (Lack of Information Transparency)

भारत में सूचना का अधिकार (RTI) लागू होने के बावजूद, सरकारी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता का अभाव है। कई बार प्रशासनिक निर्णयों और नीतियों से संबंधित जानकारी जनता तक सही समय पर नहीं पहुंचती। सूचना का अभाव न केवल जनता के अधिकारों का हनन करता है, बल्कि भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को भी बढ़ावा देता है। पारदर्शिता की कमी के कारण नागरिक सरकार की नीतियों और योजनाओं का सही आकलन नहीं कर पाते और न ही अपनी आवाज उठा पाते हैं।

10. विकेंद्रीकरण की कमी (Lack of Decentralization)

भारत में पंचायत राज प्रणाली लागू होने के बावजूद, सत्ता का विकेंद्रीकरण सही ढंग से नहीं हो पाया है। स्थानीय निकायों को वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियां नहीं मिल पाई हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की गति धीमी है। सत्ता के विकेंद्रीकरण से न केवल स्थानीय समस्याओं का समाधान तेज़ी से हो सकता है, बल्कि जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित होती है। विकेंद्रीकरण की कमी के कारण सुशासन का लक्ष्य दूर रह जाता है।

समाधान और संभावनाएं

इन समस्याओं का समाधान करना कठिन है, लेकिन असंभव नहीं। सुशासन की दिशा में सुधार के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. भ्रष्टाचार पर सख्त कानून: भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए सख्त कानूनों का क्रियान्वयन और प्रशासनिक पारदर्शिता बढ़ानी होगी।
  2. न्यायिक सुधार: न्यायपालिका में सुधार और मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए तकनीकी और संरचनात्मक सुधार आवश्यक हैं।
  3. जवाबदेही बढ़ाना: सरकारी अधिकारियों और नेताओं की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए मजबूत तंत्र विकसित करना चाहिए।
  4. शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार: शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश बढ़ाकर इन्हें सुलभ और प्रभावी बनाना होगा।
  5. जन भागीदारी: सुशासन के लिए जनता की भागीदारी बढ़ानी होगी।

सुशासन की दिशा में ये प्रयास भारत को अधिक समृद्ध और सशक्त बना सकते हैं।