कारगर कूटनीति का एक और उदाहरण Another example of Effective Diplomacy
कारगर कूटनीति का एक और उदाहरण
Another example of Effective Diplomacy
कारगर कूटनीति का एक और उदाहरण Another example of Effective Diplomacy :- करीब दो वर्ष पहले जब भारत सरकार पाकिस्तान में बंदी बनाए गए भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय लेकर गया था तब कई लोगों ने यह आशंका व्यक्त की थी कि यह कदम उलटा पड़ सकता है। ऐसे लोगों का मत था कि इस मसले को पाकिस्तान से बातचीत के जरिये सुलझाना बेहतर रहता। मोदी सरकार की कूटनीतिक सोच यह थी कि इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ले जाकर ही पाकिस्तान को घेरा जा सकता है और कुलभूषण को राहत दिलाई जा सकती है। आखिरकार ऐसा ही हुआ। कुलभूषण पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला पाकिस्तान पर दबाव बनाने और साथ ही उसे शर्मसार करने वाला है। मार्च 2016 में कुलभूषण को गिरफ्तार करने के बाद पाकिस्तान ने उन्हें आनन-फानन सैन्य अदालत के हवाले कर दिया था। अप्रैल 2017 में इस अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुना दी। इसकी भारत में तीखी प्रतिक्रिया हुई। तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में घोषणा की कि भारत कुलभूषण को बचाने के हरसंभव उपाय करेगा। अगले ही महीने भारत कुलभूषण की सजा के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय पहुंच गया। तब इस न्यायालय ने अंतरिम फैसला देते हुए कुलभूषण को दी गई फांसी की सजा पर रोक लगा दी। अब उसने अपने अंतिम फैसले में भी फांसी की सजा रोकने और साथ ही उसकी समीक्षा करने और उस पर नए सिरे से विचार करने का आदेश दिया है। यह सामान्य बात नहीं कि 16 जजों की पीठ में से 15 ने एकमत से यह फैसला दिया। इन न्यायाधीशों ने कुलभूषण को राजनयिक मदद मुहैया कराने का भी आदेश दिया है। यह भी महत्वपूर्ण है कि कुलभूषण को भारतीय नागरिक मानते हुए पाकिस्तान को वियना संधि के उल्लंघन का दोषी करार दिया गया। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान ने भारत को कुलभूषण की गिरफ्तारी की सूचना देने में देर की और फिर उन्हें कानूनी सहायता उपलब्ध कराने से भी इन्कार किया ।
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अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला इसलिए उल्लेखनीय है, क्योंकि उसमें चीन के न्यायाधीश की सहमति शामिल है। ध्यान रहे कि चीन पाकिस्तान के संरक्षक देश के रूप में उभरा है। भले ही पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को अपनी जीत बता रहा हो, लेकिन यह तय है कि उस पर दबाव बढ़ा है। भारत ही नहीं, दुनिया के अन्य देशों की भी इस पर निगाह रहेगी कि पाकिस्तान कुलभूषण जाधव के मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले पर ढंग से अमल करता है या नहीं? इस फैसले का अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि कुलभूषण जैसे मामले रह-रह कर सामने आते रहते हैं। कई देश दूसरे देशों के नागरिकों को गिरफ्त में लेकर उन्हें वैसे ही जासूस करार देते हैं जैसे पाकिस्तान ने कुलभूषण को करार दिया। अब ऐसे सभी नागरिकों को कानूनी मदद मिलने का रास्ता और मजबूत हो गया है। पाकिस्तान ने कुलभूषण को ईरान से अगवा कर उन्हें बलूचिस्तान में तोड़फोड़ का जिम्मेदार बताने का काम इसीलिए किया था ताकि दुनिया को यह दिखा सके कि उसके इस इलाके में अशांति और अस्थिरता के लिए उसकी अपनी दमनकारी नीतियां नहीं, बल्कि भारत का हस्तक्षेप जिम्मेदार है। पाकिस्तान की पोल तभी खुल गई थी जब उसने यह प्रचारित करने की कोशिश की थी कि कुलभूषण ने बलूचिस्तान में अमुक-अमुक हमलों को अंजाम दिया है। यह इसलिए हास्यास्पद था, क्योंकि एक अकेला आदमी यह सब नहीं कर सकता। उसकी पोल तब भी खुली थी जब उसने कुलभूषण का वीडियो जारी किया था। करीब दो दर्जन कट वाले इस वीडियो में कुलभूषण का इकबालिया बयान था। इस वीडियो ने यही साबित किया कि पाकिस्तान ने झूठी कहानी गढ़ने की कोशिश की। पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने कुलभूषण के इसी तथाकथित इकबालिया बयान के आधार पर उन्हें फांसी की सजा सुना दी थी ।
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अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत के वकील हरीश साल्वे ने कुलभूषण जाधव की पैरवी करते हुए यह साबित किया था कि पाकिस्तान ने किस तरह न्याय के नाम पर मजाक किया है। उन्होंने मेहनताने के तौर पर केवल एक रुपया लिया, जबकि पाकिस्तान ने अपने वकील को बतौर फीस करोड़ों रुपये चुकाए। यह जो आशंका जताई जा रही है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले की अनदेखी कर सकता है वह इसलिए निमरूल है, क्योंकि वह इस समय चौतरफा दबाव से भी घिरा है और गंभीर आर्थिक संकट से भी जूझ रहा है। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले की अनदेखी कर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निशाने पर आने का जोखिम नहीं ले सकता। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि वह आतंकवाद के खिलाफ जरूरी कदम न उठाने के कारण पहले से ही अंतरराष्ट्रीय संस्था एफएटीएफ के निशाने पर है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभूषण की सजा रद करने की भारत की मांग को नहीं माना, फिर भी यह अच्छा हुआ कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कुलभूषण को तुरंत छोड़ने की मांग की। पाक पर दबाव बनाने के लिए ऐसा करना आवश्यक था। वह दबाव में आता हुआ दिख भी रहा है, क्योंकि उसकी ओर से यह कहा गया है कि वह अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले के अनुरूप जाधव को राजनयिक मदद उपलब्ध कराने के कदम उठा रहा है ।
विभाग की परिभाषा
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फजीहत हुई हो। इसके पहले उसे तब शर्मिदगी उठानी पड़ी थी जब सुरक्षा परिषद ने पाक में पल रहे जैश-ए-मुहम्मद के आतंकी सरगना मसूद अजहर पर पाबंदी लगाई थी। इसके बाद उसे तब भी शर्मिदा होना पड़ा था जब एफएटीएफ ने फटकार लगाते हुए कहा था कि उसे काली सूची में डाला जा सकता है। बार-बार फजीहत के बावजूद भारत के प्रति पाकिस्तान के रवैये में बदलाव आने की संभावना कम ही है। शायद इसीलिए मोदी सरकार भी उसके प्रति अपना रुख-रवैया नहीं बदल रही है। बालाकोट में एयर स्ट्राइक के साथ भारत ने उसके खिलाफ जो रवैया अपनाया उससे वह अपने को मुश्किलों से घिरा पा रहा है ।
बालाकोट में एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने यह शोर मचाने की बहुत कोशिश की कि उसकी सीमाओं का अतिक्रमण किया गया है, लेकिन दुनिया ने भारत का ही पक्ष लिया। भारत ने यह स्पष्ट कर उसकी मुश्किल बढ़ाने का ही काम किया है कि उससे तब तक बातचीत संभव नहीं जब तक वह आतंक के खिलाफ कारगर कदम नहीं उठाता। पाक को ऐसा ही संकेत तब दिया गया था जब प्रधानमंत्री मोदी ने शपथ ग्रहण समारोह में बिम्सटेक देशों के शासनाध्यक्षों को आमंत्रित करने का फैसला लिया और फिर शंघाई सहयोग परिषद की बैठक में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से औपचारिक मुलाकात करने से इन्कार किया। शायद इसी चौतरफा दबाव के कारण पाकिस्तान का कश्मीर राग धीमा पड़ा है। अब जब यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार पाकिस्तान के प्रति अपने सख्त रवैये में बदलाव नहीं लाने वाली तब फिर विपक्षी दलों के लिए भी यह आवश्यक हो जाता है कि वे पाकिस्तान पर दबाव बनाने में सरकार का साथ दें। निरंतर दबाव ही पाकिस्तान को कुलभूषण जाधव को छोड़ने के लिए विवश कर सकता है ।
यह आशंका निमरूल है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले की अनदेखी कर सकता है, क्योंकि वह इस समय चौतरफा दबाव से घिरा है
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