मनुष्य को अपने जीवन में स्वतन्त्र होना जरुरी है ।

मनुष्य को अपने जीवन में स्वतन्त्र होना जरुरी है ।
मनुष्य को अपने जीवन में स्वतन्त्र होना जरुरी है ।


 
मनुष्य के सर्वागीण विकास के लिए स्वतन्त्र रहना बेहद जरुरी है । मनुष्य यदि स्वतंत्र रहेगा तो वह अपने बुद्धि, विवेक और चेतना को अपने नियंत्रण में रख सकता है । स्वतंत्रता के बिना मनुष्य अपने बुद्धि विवेक और चेतना को खो देता है । एक स्वतंत्र व्यक्ति वह व्यक्ति हो सकता है जो सहायता के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहता है ।कोई ऐसा व्यक्ति जो अकेले कार्य करना पसंद करता है, कोई ऐसा व्यक्ति जो फैशन या सोच में वर्तमान से भविष्य के बारे में बदलाव लेन के बारे में चिंतित हो , कोई ऐसा व्यक्ति जो परवाह नहीं करता है कि दूसरे उनके बारे में क्या सोचते हैं । जब मनुष्य इस बात को अपने मन से हटा दे कि लोग उसके बारे में के सोचते है तो वह किसी भी कार्य को करने से नहीं घबराता है । हमें अपनी सोच में बदलाव लाना होगा । लोग क्या सोचते है, इस बात का कोई मतलब नहीं निकलता है । आप अपने बारे में क्या सोचते है ये बात मायने रखता है, क्योंकि स्वतंत्रता और सफलता आपको चाहिए न की उस व्यक्ति को जो आपके प्रति अच्छा या बुरा सोचता है । ये बात आप पर ख़त्म होती है कि आप क्या सोचते है ।
स्वतंत्रता स्वाधीनता शब्द का पर्याय है । जिसका अर्थ है किसी अन्य की नहीं बल्कि स्वयं की अधीनता । आप अपने बुद्धि,विवेक और चेतना के प्रति अधीन है । आप जो सोचते है वही करते भी है क्योंकि आप मन आपको वे कार्य करने को मजबूर करता है । स्वतंत्र लोग वे हैं जो दुनिया को देखते हैं, इसके अच्छे और बुरे के साथ, और सचेत रूप से अपने और दूसरों के लिए मजबूत होना चुनते हैं । आप स्वतंत्र नहीं हैं क्योंकि आप किसी पर भरोसा नहीं करते हैं । आप स्वतंत्र नहीं हैं क्योंकि आप अपने बारे में बहुत सोचते हैं । स्वतंत्र लोग स्वाभाविक रूप से अपने जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दों से निपटने के लिए थोड़ा अधिक आश्वस्त होते हैं । यह मुख्य रूप से है क्योंकि वे कार्रवाई करने और किसी और से समर्थन या अनुमति के लिए प्रतीक्षा किए बिना चीजें करने के लिए अधिक तैयार हैं । स्वतंत्र होने का मतलब है कि आप उन नई चीजों की कोशिश करने की अधिक संभावना रखते हैं जो आप चाहते हैं, बजाय इसके कि आप किस तरह उम्मीद अपने जीवन से करते हैं । इसका मतलब यह भी है कि आपके पास कम स्वतंत्र व्यक्ति की तुलना में अधिक अनुभव होगा । यह समय के साथ आप में इस विश्वास के साथ और अधिक आत्मविश्वास पैदा करेगा कि आप अपने दम पर काम कर सकते हैं या नहीं ।


मनुष्य जब स्वतंत्र नहीं होता है तो वह दुसरे व्यक्ति पर भरोसा करता हैं । ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि उसके पास खुद के लिए कोई विकल्प नहीं होता हैं या वे अपने पक्ष में किसी के बिना अपने जीवन के चुनौतियों से गुजरने में शर्म महसूस करता हैं । यह चरित्र आपको अत्यधिक जरूरतमंद दिखाई देता है पर जो व्यक्ति स्वतन्त्र नही है उसकी समाज में दुसरे पर भरोसा करने के आलावा कोई विकल्प नहीं है । यदि कोई व्यक्ति स्वतंत्र है तो उसकी समाज में बहुत सराहना होती है, और लोग उसके पास मदद के लिए जाते है । आपको अपने जीवन में स्वतन्त्र होना होगा । समाज और स्वतंत्रता का भी संबंध सहचार्य है । एक संगठित समाज सभ्य समाज के निवासी एवं सामाजिक प्राणी होने के नाते हमें कुछ सीमाओं का पालन करना आवश्यक है । स्वतंत्रता के इन्हीं नियमों एवं सीमाओं से समाज में समानता का भाव निर्मित होता है । यह हमारी स्वच्छंदता और शक्तियों के अविवेकपूर्ण उपयोग को रोकती है । स्वतंत्रता की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण शर्त है आतंरिक चाह । यदि आंतरिक चाह न हो तो स्वतंत्रता नहीं बच सकती है ।