भारतीय संवैधानिक विकास (Constitutional Development of India)

भारतीय संवैधानिक विकास :- ब्रिटिश शासन के दौरान संविधान में हुए परिवर्तनों (जिससे ब्रिटिश शासनकालीन भारत में प्रशासन की कार्यपद्धति और संगठन के लिए कानूनी आधार प्राप्त हुआ) की प्रमुख घटनाएँ नीचे समयानुक्रम के अनुसार दी जा रही हैं

रेगुलेटिंग एक्ट 1773

ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियंत्रित और विनियमित करने की दिशा में उठाया गया यह पहला कदम था। इसके फलस्वरूप केंद्रीय प्रशासन की नींव निम्नलिखित तीन संदर्भों में पड़ी

  1. इस अधिनियम ने बंगाल के गर्वनर को बंगाल के गवर्नर-जनरल का पद दिया। प्रथम गवर्नर-जनरल होने का श्रेय लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स को मिला।
  2. इसने बंबई और मद्रास के गवर्नरों को बंगाल के गवर्नर-जनरल के अधीन किया।
  3. इसने कोलकाता में शीर्ष न्यायालय के रूप में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की।

तुलनात्मक लोक प्रशासन का अर्थ

भारतीय संविधान के विकास का संक्षिप्त इतिहास

1757 ई. की पलासी की लड़ाई और 1764 ई. के बक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिये जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने शासन का शिकंजा कसा । इसी शासन को अपने अनुकूल बनाये रखने के लिए अंग्रेजों ने समय समय पर कई ऐक्ट पारित किये, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियाँ बनीं। वे निम्न हैं

1773 ई. का रेग्यूलेटिंग एक्ट इस अधिनियम का अत्यधिक संवैधानिक महत्व है; जैसे

  1. भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था। अर्थात् कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया।
  2. इसके द्वारा पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनैतिक कार्यों को मान्यता मिली ।
  3. इसके द्वारा केन्द्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी।
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1773 ई. का रेग्यूलेटिंग एक्ट की विशेषताएँ :

ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारियों की गलत प्रवृत्तियों के कारण कम्पनी को हुई क्षति पर रिपोर्ट देने के लिए 1772 ई. में गठित एक गुप्त समिति के प्रतिवेदन पर 1773 ई. में रेग्युलेटिंग एक्ट पारित किया गया, जिसके मुख्य प्रावधान थे

  1. कम्पनी डायरेक्टरों को ब्रिटिश संसद ने कम्पनी के राजस्व, दीवानी एवं सैन्य प्रशासन से सम्बन्धित मामलों से अवगत कराने का निर्देश दिया।
  2. इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जेनरल पद नाम दिया गया तथा मुम्बई एवं मद्रास के गवर्नर को इसके अधीन किया गया। इस एक्ट के तहत बनने वाले प्रथम गवर्नर जेनरल लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स थे।
  3. इस ऐक्ट के अन्तर्गत कलकत्ता प्रेसीडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गई, जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद् के चार सदस्य थे, जो अपनी सत्ता के उपयोग संयुक्त रूप से करते थे । ये पार्षद सैन्य तथा नागरिक प्रशासन से सम्बद्ध थे, निर्णय बहुमत के आधार पर लिए जाते थे। कानून बनाने का अधिकार गवर्नर-जनरल समेत उसकी परिषद् को दे दिया गया, परन्तु इन कानूनों को लागू करने से पूर्व भारत सचिव से अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य था।
  4. इस अधिनियम के अन्तर्गत कलकत्ता में 1774 ई. में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी। इस न्यायालय में प्राथमिक तथा अपील के अधिकार की अनुमति थी। जिसमें मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर एलिजाह इम्पे थे (अन्य तीन न्यायाधीश-1. चैम्बर्स 2. सेमेस्टर 3. हाइड)।
  5. इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया।
  6. इस अधिनियम के द्वारा, ब्रिटिश सरकार को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया। इसे भारत में इसके राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया।

ऐक्ट ऑफ सेटलमेंट 1781 ई.:- रेग्यूलेंटिग ऐक्ट की कमियों को दूर करने के लिए इस ऐक्ट का प्रावधान किया गया। इस ऐक्ट के अनुसार कलकत्ता की सरकार को बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए भी विधि बनाने का प्राधिकार प्रदान किया गया