मातृभाषा का महत्व
Importance of Mother Tongue
मातृभाषा का महत्व (Importance of Mother Tongue🙂 मातृभाषा वह भाषा है जो मनुष्य बचपन से मृत्यु तक बोलता है घर परिवार में बोली जाने वाली भाषा ही हमारी मातृभाषा है । भाषा संप्रेषण का एक माध्यम होती है जिसके द्वारा हम अपने विचारों का आदान प्रदान करते है और अपनी मन की बात किस के समक्ष रखते है । जो शब्द रूप में सिर्फ अभिव्यक्त ही नहीं बल्कि भाव भी स्पष्ट करती है । एक नन्हा सा बालक अपनी मुख से वही भाषा बोलता है जो उसके घर परिवार में बड़े लोग बोलते है । इस भाषा का प्रयोग करके वह अपने विचारों को अपने माता पिता को अपनी मुख से उच्चारण करे बताता है । उसका भाषा ज्ञान सीमित होता जाता है । भाषा ज्ञान की प्राप्ति का वह मार्ग है जिसके जरिये व्यक्ति दैनिक जीवन मे प्रयोग करके सफलता प्राप्त करता है । भाषा के बिना मनुष्य जानवर के समान है जो देख तो सकता है पर अपने अन्दर छुपी भावनाओं को कह नही सकता ।
भटकाव की स्वतंत्रता
हमे अपनी मातृभाषा को कभी भी नही भुलाना चाहिए । जिस तरह से एक गाय का दूध माँ का दूध नही हो सकता और न ही माँ का दूध गाय का दूध हो सकता है । हमारी मातृभाषा हमारी अपनी भाषा है जिसको सदैव याद रखना कि किस तरह से गांधीजी ने विदेशी भाषा का विरोध किया था । गाँधीजी ने कहा था कि यदि हमरा स्वराज अंग्रेजी के तरफ जाता है तो हमे अपनी राष्ट्र भाषा को अंग्रेजी कर देना चाहिए, यदि हमारा स्वराज हिंदी के तरफ जाता है तो हमे अपनी राष्ट्र भाषा को हिंदी कर देना चाहिए । इस बात कि परिवर्तित स्थितियों ने भाषा पर बहस को जन्म दिया है । जीवन में आधुनिकता के प्रवेश ने कई क्षेत्रों के स्वरूपों को प्रभावित करने का कार्य किया है । इसी क्रम में आधुनिकता मातृभाषा को मात्र भाषा बनाने की दिशा में कोई कसर शेष नहीं रखना चाहती । किंतु इन सबके बाद भी हमारी मातृभाषा के महत्व पर कोई आंच नहीं आई है । हिंदी भाषा की स्मृति से या प्रत्यक्ष भी होता है
आनंद का मार्ग
हिंदी न सिर्फ भारत देश में वर्णन है बल्कि दुनिया भर में रहने वाले हिंदुस्तानियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा है, किंतु दुर्बल पक्ष यह है कि इस भाषा का उपयोग करने वाले कतिपय विद्वत जन ही अपनी मातृभाषा के प्रति दलानी भाव को अभिव्यक्त करने में संकोच नहीं करते हैं । मातृभाषा के प्रति महात्मा गांधी कहते थे कि हृदय की कोई भी भाषा नहीं है हृदय हृदय से बातचीत करता है और हिंदी ह्रदय की भाषा है यह पूर्णता सत्य है । हिंदी में वह क्षमता है जो आंखों से बहते आंसू धारा का वर्णन इस रूप में करती है कि उसे पढ़ने वाले पाठक को आंसू बहा रहे व्यक्ति की मन स्थिति का बोध हो जाता है । क्या किसी अन्य भाषा के भाव ह्रदय तल तक महसूस किए जा सकते हैं ?
हमारी हंसी किसी भी भाषा में अभिव्यक्त हो सकती है । किंतु दूसरों की पीड़ा, दर्द और उसके विचार का अनुभव मातृभाषा में ही होता है । यह भाव से भावों को जोड़ने कि एक कड़ी का कार्य करती है । समय के साथ कदमताल मिलाते हुए उन्नति और प्रगति के मार्ग पर चल सफल होना भी आवश्यक है । इसलिए अन्य भाषा का ज्ञान होना या उनका कार्य में प्रयोग करना भी आना चाहिए ये बुरा नहीं है । किंतु अपनी मातृभाषा को निमिता मानना भी किसी भी अर्थ में सही नहीं है । इस भाषा के उपयोग पर अपमान नहीं बल्कि अभिमान जैसे भावों के संचरण की आवश्यकता है क्योंकि यह भाषा हमारी पहचान है ।
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