मानव जीवन में संतुष्टि ही मनुष्य का सबसे बड़ा खजाना और शक्ति है

मानव जीवन में संतुष्टि ही सबसे बड़ा खजाना और शक्ति है । मानव आत्मा के सात मूलभूत गुण हैं । शांति, प्रेम, पवित्रता, खुशी, आनंद, ज्ञान और आत्म-शक्ति ये सात जून मानव के मुलभुत गुण की तरह । जब ये सभी गुण किसी व्यक्ति में पूर्णता में मौजूद होते हैं, तो उस व्यक्ति को सतोगुणी कहा जाता है और इन गुणों का समावेश संतुष्टि है । संसार का धन भी संतुष्टि के सामने फीका पड़ जाता है । ऐसा इसलिए है क्योंकि दुनिया के सभी वैभव और भौतिक सुख मनुष्य को वास्तविक संतुष्टि नहीं दे सकते हैं । यही सच है, मनुष्य की सांसारिक इच्छाओं की कोई सीमा नहीं है । महात्मा बुद्ध के अनुसार, भौतिक इच्छाएँ मानव के दुख का कारण हैं ।

भौतिक इच्छाओं का अंत करे

भौतिक इच्छाओं का अंत दुख का अंत है । इसलिए, उन्होंने दिखाया है कि इच्छाओं को शुभकामनाओं में कैसे बदलना है । शास्त्रों में इसे ‘इच्छा मतिमान अविद्या’ कहा गया है । और यह भी कहा जाता है कि ‘सा विद्या या विमुक्तये’ का अर्थ वही ज्ञान है, जो व्यक्ति को इच्छाओं और कामुक आनंद से पैदा होने वाले रोगों, कष्टों और दुखों से मुक्त कर सकता है । मानव जीवन में संतुष्टि मनुष्य को निष्क्रिय नहीं, बल्कि सक्रिय, रचनात्मक, सकारात्मक, आशावादी, वफादार, ईमानदार और प्रगतिशील बनाता है । लोगों को उत्साह, , साहस, आत्मविश्वास और सभी की सच्चाई, अच्छाई और अच्छाई के लिए नैतिकता के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें ।

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मानव जीवन में संतुष्टि बेहद जरुरी

मानव जीवन में संतुष्टि इन्सान को सदगुण बनता है और वह अपने मार्ग पर एक शांति के साथ चलता रहता है । एक संतुष्ट व्यक्ति हमेशा शांत, ठंडा, संतुलित, सहनशील, धैर्यवान, लचीला और मिलनसार होता है । श्रीमद्भगवद्गीता के अर्जुन की तरह, सभी मानसिक द्वंद्वों और सवालों से परे खुश रहता है । अपने क्षेत्र में एक कर्मयोगी बनें, सामाजिक बुद्धि के साथ हर कार्य में सफल, संतुष्ट और ज्ञानवान हैं । संतुष्टि बढ़ाने के लिए, चेतना में निहित सात गुणों का नियमित ध्यान, चिंतन और समझ आवश्यक है । ये गुण और शक्तियाँ मन और बुद्धि के साथ ईश्वर से जुड़ी होनी चाहिए ।