अभिप्रेरणा और अधिगम से महत्वपूर्ण प्रश्न

अभिप्रेरणा और अधिगम

अभिप्रेरणा का अर्थ (Meaning of Motivation )

मनुष्य स्वभाव से ही क्रियाशील प्राणी है । वह सदा ही किसी-न-किसी कार्य में लगा रहता है और कोई-न-कोई व्यवहार करता रहता है। बिना प्रयोजन के वह कोई कार्य या व्यवहार नहीं करता । उसके कार्य का उद्देश्य किसी लक्ष्य विशेष की पूर्ति करना होता है। उदाहरणार्थ – एक अच्छा विद्यार्थी बड़े उत्साह एवं लगन से अध्ययन करता है, जबकि दूसरा अध्ययन की ओर से उदासीन रहता है।

अधिगम (सीखना) की संकल्पना तथा अर्थ (Meaning and Concept of Learning)

मनोवैज्ञानिकों ने सीखने को वैज्ञानिक ढंग से परिभाषित करने की कोशिश की है। सामान्य अर्थ में सीखना व्यवहार में परिवर्तन को कहा जाता है। परन्तु सभी तरह के व्यवहार में हुए परिवर्तन को सीखना नहीं कहा जाता है। व्यवहार में परिवर्तन थकान, दवा खाने, बीमारी, परिपक्वन आदि से भी हो सकता है परन्तु ऐसे परिवर्तनों को सीखना नहीं कहा जाता है। मनोविज्ञान में सीखने से तात्पर्य सिर्फ उन्हीं परिवर्तनों से होता है जो अभ्यास या अनुभव के फलस्वरूप होते हैं तथा जिसका उद्देश्य बालक को समायोजन में मदद करना होता है।

मूल प्रवृत्ति का सिद्धान्त दिया है -विलियम मैक्डूगल

मैकडॉगल के जाने-माने इंट्रोडक्शन टू सोशल साइकोलॉजी ने मानव व्यवहार का एक डार्विनियन सिद्धांत विकसित किया,मैकडॉगल के अनुसार, प्राथमिक भावनाएं भय, घृणा, आश्चर्य, क्रोध, अधीनता, उत्साह, कोमलता थीं। उनके अनुसार, प्रत्येक सहज प्रवृत्ति की एक समान भावना होती है। विलियम मैक्डूगल के अनुसार “अभिप्रेरणा की व्याख्या जन्मजात मूल प्रवृत्तियों के आधार पर की जा सकती है।”

महात्मा गाँधी के शैक्षिक दर्शन

अभिप्रेरणा दो प्रकार के होती है – आन्तरिक एवं बाह्य अभिप्रेरणा

आन्तरिक अभिप्रेरणा :- बालकों के सीखने में आन्तरिक अभिप्रेरण तथा बाह्य अभिप्रेरण का महत्त्व अद्वितीय होता है। आन्तरिक अभिप्रेरण से तात्पर्य मोटे तौर पर ‘स्वतः अभिरुचि’ से है। जब बालक किसी विषय के बारे में सीखता है, तो इसका अर्थ है कि उसमें उसकी अभिरुचि है। इस तरह का अभिप्रेरण ऐसे कारकों पर निर्भर करता है जो बालक में पाए जाते हैं तथा जिन्हें बाहर से प्रत्यक्ष रूप से देखना सम्भव नहीं है। अतः वातावरण के साथ समायोजन करने से उत्पन्न आत्म-निर्णय तथा क्षमता के भाव की आवश्यकता को आन्तरिक अभिप्रेरण कहा जा सकता है।

बाह्य अभिप्रेरणा :- बाह्य अभिप्रेरण से तात्पर्य एक ऐसे प्रोत्साहन से है जो बालकों को बाहरी वातावरण में दिया जाता है तथा उसके व्यवहार को एक निश्चित दिशा में मोड़ा जाता है। स्वार्ज के अनुसार, “बाह्य अभिप्रेरण वह प्रोत्साहन होता है जो बालक को बाहर से उस व्यक्ति द्वारा दिया जाता है जो एक निश्चित दिशा में व्यवहार Sa करने के लिए प्रेरित करता है। “

आन्तरिक अभिप्रेरणा को कहते हैं – सकारात्मक अभिप्रेरणा

आन्तरिक अभिप्रेरणा इतनी सबल होती हैं कि व्यक्ति को प्रणोदन के लिए प्रेरित करती हैं । इच्छापूर्ति व सन्तुष्टि प्राप्ति के पश्चात् ही इसकी समाप्ति होती है।सकारात्मक प्रेरणा इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपनी स्वयं की इच्छा से करता है। इस कार्य को करने से उसे सुख और सन्तोष प्राप्त होता है।

पुरस्कार, दण्ड, प्रशंसा आदि है – बाह्य अभिप्रेरणा

बाह्य अभिप्रेरणा में बालक/व्यक्ति की इच्छा गौण होती है। कक्षा शिक्षण में या सामाजिक वातावरण में व्यक्ति की प्रशंसा एवं निन्दा आदि के कारण से बाह्य अभिप्रेरणा उत्पन्न होती है। छात्रों में नवीन चीजों को सीखने हेतु शिक्षक बाह्य अभिप्रेरणा का उपयोग कर सकता है ।नकारात्मक प्रेरणा इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपनी स्वयं की इच्छा से न करके, किसी दूसरे की इच्छा या बाह्य प्रभाव के कारण करता है। इस प्रकार को करने से उसे किसी वांछनीय या निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती है।

मोटिवेशन शब्द की उत्पत्ति हुई है – मोटम (Motum)

अंग्रेजी के ‘मोटीवेशन’ (Motivation) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा की मोटम (Motum) धातु से हुई है, जिसका अर्थ है – मूव मोटर (Move Motor) और मोशन (Motion)

मनोवैज्ञानिकों ने मनुष्य को माना है – यंत्र

जन्मजात प्रेरक है — भूख

जन्मजात प्रेरक नहीं है – मदव्यसन

प्राणी के समस्त व्यवहार के पीछे निहित कारक है – अभिप्रेरणा

अभिप्रेरणा ( Motivation) – मनुष्य का प्रत्येक कार्य जिसे वह करना चाहता है किसी न किसी अभिप्रेरणा से संचालित होता है। व्यक्ति की बहुत-सी आवश्यकताएँ होती हैं। ऐसी आवश्यकताएँ जिनकी सन्तुष्टि नहीं हो पाती है वह उनकी सन्तुष्टि करने के लिए प्रयत्न करता है। इनकी पूर्ति के लिए उसमें प्रेरक उत्पन्न हो जाता है तथा व्यक्ति अत्यधिक क्रियाशील हो जाता है। अभिप्रेरणा ही उसे उद्देश्य की ओर ले जाती है तथा व्यक्ति उस प्रयोजन से प्रेरित होकर क्रिया करने को बाध्य हो जाता है ।

अभिप्रेरणा अधिगम का है – सहायक अंग

अभिप्रेरणा सीखने की प्रक्रिया और परिणाम दोनों को प्रभावित करती है। अभिप्रेरित शिक्षार्थी सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, उनके सीखने की गति तीव्र होती है उनका सीखना भी अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होता है । एन्डरसन ने इस तथ्य को बड़े संक्षिप्त रूप में अभिव्यक्त किया है। उनके शब्दों में- “सीखने की प्रक्रिया सर्वोत्तम रूप में आगे बढ़ेगी यदि वह अभिप्रेरित होगी।”

स्किनर के अनुसार- अभिप्रेरणा, सीखने का राजमार्ग है।”

अभिप्रेरणा शिक्षार्थी में सीखने के लिये उत्सुकता पैदा करती है। अभिप्रेरणा व्यक्ति में एक ऐसी ऊर्जा (शक्ति) उत्पन्न करती है जो उसे निर्धारित उद्देश्य सम्बन्धी लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर अग्रसर करती है और उसे निर्धारित उद्देश्य सम्बन्धी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आवश्यक कार्य करने की ओर धकेलती है।

अभिप्रेरणा शिक्षार्थी को वह सब सीखने के लिये भी क्रियाशील रखती है जिसमें उसकी रुचि नहीं होती। उदाहरणार्थ यदि शिक्षार्थी की गणित में रुचि नहीं है परन्तु वह इंजीनियर बनने के लिये अभिप्रेरित है तो वह गणित की समस्याओं को हल करने में क्रियाशील रहेगा।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अभिप्रेरणा चक्र के क्रमिक कदम कौन-सा – आवश्यकता, अन्तर्नोद, प्रोत्साहन या लक्ष्य

मनोवैज्ञानिक हिलगार्ड ने इन तीनों के सम्बन्ध को बड़े सरल और स्पष्ट रूप में अभिव्यक्त किया है। इनके अनुसार- “आवश्यकता (Need) अन्तर्नोद (Drive) को जन्म देती है। अन्तर्नोद बढ़े हुये तनाव की स्थिति हैं जो क्रिया (Activity) और प्रारम्भिक व्यवहार (Preparatoy behaviour) की ओर ले जाती है। प्रोत्साहन बाह्य पर्यावरण की कोई वस्तु होती है जो आवश्यकता की संतुष्टि करती है और इस प्रकार संतुष्टि की क्रिया द्वारा अन्तर्नोद को कम करती है ।”

आवश्यकता किसी वस्तु की कमी की अवस्था को हम आवश्यकता कह सकते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने आवश्यकता को अभिप्रेरण की उत्पत्ति में पहला कदम बताया है, क्योंकि अभिप्रेरणात्मक चक्र में पहले आवश्यकता ही उत्पन्न होती है। व्यक्ति में मुख्य रूप से दो तरह की आवश्यकताएँ होती हैं- जैविक आवश्यकता तथा सामाजिक आवश्यकता । भूख, प्यास, काम, मल-मूत्र त्याग, नींद आदि व्यक्ति की जैविक आवश्यकताएँ हैं जबकि उपलब्धि प्राप्त करने, दूसरों पर आधिपत्य जमाने, धन कमाने, दूसरों से सम्बन्ध स्थापित करने आदि की आवश्यकता सामाजिक आवश्यकताएँ हैं।

अन्तर्नोद जब व्यक्ति में किसी तरह की आवश्यकता • उत्पन्न होती है, तो उससे स्वभावतः उसमें क्रियाशीलता बढ़ जाती है तथा वह पहले से अधिक सक्रिय एवं तनावग्रस्त मालूम पड़ता है। इसे ही अन्तनोंद की संज्ञा दी गई है। भूख आवश्यकता से व्यक्ति में भूख अन्तर्नोद तथा प्यास आवश्यकता से प्यास अन्तर्नोद उत्पन्न होता है। इन शारीरिक आवश्यकताओं के अलावा व्यक्ति में कुछ मनोवैज्ञानिक आवश्यकता भी होती है जिनमें मनोवैज्ञानिक अन्तनोंद की उत्पत्ति होती है।

प्रोत्साहन या लक्ष्य प्रोत्साहन या लक्ष्य वातावरण की वह वस्तु होती है जो व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है तथा जिसकी प्राप्ति से उसकी आवश्यकता की पूर्ति तथा अन्तनोंद में कमी हो जाती है। जैसे एक भूखे व्यक्ति के लिए भोजन लक्ष्य तथा प्रोत्साहन होता है जो व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है तथा जिसकी प्राप्ति से भूख की आवश्यकता समाप्त आवश्यकता समाप्त हो जाती है एवं क्रियाशीलता और तनाव की स्थिति भी कम हो जाती है।

एक अभिप्रेरित शिक्षण ( Motivated Teaching) का संकेतक माना जाता है – विद्यार्थियों द्वारा प्रश्न पूछने को

अभिप्रेरणा एक प्रक्रिया के सन्दर्भ में उपयुक्त नहीं है – वह व्यक्ति को अप्रिय स्थिति से दूर रखता है

आन्तरिक रूप से अभिप्रेरित बच्चों (Intrinsically motivated children) के लिए सही नहीं है -ये हमेशा सफल होते हैं

आप देखते हैं कि एक बच्चा बुद्धिमान है, आप -वह जैसे अधिक प्रगति कर सके उस तरह उसे अनुप्रेरित करेंगे

विद्यालय में विद्यार्थियों को अभिप्रेरित करना उचित है – गहन अध्ययन द्वारा

जन्मजात अभिप्रेरक है- निद्रा

 “अभिप्रेरणा की व्याख्या जन्मजात मूल प्रवृत्तियों के आधार पर की जा सकती है।” यह कहा – मैक्डूगल ने

कक्षा में शिक्षक के तौर पर निर्देशित निर्धारित कर, श्यामपट्ट का प्रयोग कर, दृष्टान्त उदाहरण द्वारा एवं छात्रों की सक्रिय भागीदारी द्वारा – छात्रों को प्रेरित करते हैं

सीखने के लिए अधिकतम रूप से अभिप्रेरित करता है – लक्ष्यों को प्राप्त करने में व्यक्तिगत सन्तुष्टि

आन्तरिक रूप से अभिप्रेरित विद्यार्थी के लिए बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है – पुरस्कार की

किसी शिक्षक को यदि यह लगता है कि उसका एक विद्यार्थी जो पहले विषय वस्तु को भली प्रकार सीख रहा था उसमें स्थिरता आ गई है। शिक्षक को ऐसे – विद्यार्थी को प्रेरित करना चाहिए

सीखने को प्रभावित करने वाले कारक हैं – अनुकरण, प्रशंसा एवं निन्दा और प्रतियोगिता

प्रेरणा का वही सम्बन्ध उपलब्धि से है जो अधिगम का है – बोध से

उत्सुकता परीक्षण घटक है -अभिप्रेरणा का

अभिप्रेरणा वर्णित होती है – भावात्मक जाग्रति द्वारा

अर्जित प्रेरक का उदाहरण है -रुचि

अभिप्रेरणा के लिए अक्सर प्रयोग किया जाता है – आवश्यकता शब्द का

एक अभिप्रेरित बालक प्रदर्शित नहीं करता है – समूह से अलगाव का

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